जेब में डाका डाल रहे हैं प्राइवेट स्कूल, शिक्षा के आगे मजबूर हुए पालक
प्राइवेट स्कूलों ने वापस लिया अपना फैसला, अब यूनिफार्म पहन के जाएंगे बच्चे
रायपुर। शिक्षा एक गैर व्यापारिक संस्था है जिनका उद्देश्य बच्चों को एक बेहतर शिक्षा के रूप में सेवा प्रदान करना है। लेकिन वर्तमान में शिक्षा की जो हालत है चाहे वह केंद्र की बात हो या राज्य की बड़े से बड़े नेता मंत्रियों ने धन लाभ अर्जन करने के लिए एक एक प्राइवेट स्कूल का निर्माण कर लिया है और सरकारी स्कूल के नाम पर सरकार केवल खानापूर्ति कर रही है।
धन उगाही के लिए कुख्यात प्राइवेट स्कूलों ने पहली बार पालकों के हित में फैसला लिया था। निजी स्कूलों के ऐसाेसिएशन ने पालकों को राहत दी कि वे नए सत्र प्रारंभ होने तक अपने बच्चों को सामान्य ड्रेस में भी भेज सकते हैं। इससे लाखों पालकों की जेब ढीली होने से बच रही थी। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन तक नहीं रही और निजी स्कूल ने अपना फैसला वापस लेते हुए फिर से बच्चों को स्कूल ड्रेस में आने का फरमान जारी कर दिया दिक्कत इस बात की नहीं की बच्चों को स्कूली गणवेश में भेजना पालक नहीं चाहते। दिक्कत इस बात की है कि निजी स्कूल हर साल अपने स्कूल को यूनिक साबित करने के लिए स्कूल ड्रेसों में परिवर्तन करते आई है। तो वही हफ्ता के 1 दिन कुछ अलग करने के लिए बच्चों को अलग-अलग कलर के टीशर्ट में स्कूल बुलाया जाता है। लेकिन इन टीशर्ट के कलरों में भी हर बार कोई ना कोई बदलाव होता रहता है। ऐसे में जो मध्यम वर्गीय परिवार है और जिन्होंने अपने बच्चों को अच्छी और बेहतर शिक्षा देने के लिए निजी स्कूलों का सहारा लिया है उनके जेब में भारी मार पड़ती है।
जितनी आज के समय में शिक्षा महंगी नहीं उससे कहीं ज्यादा निजी स्कूलों के दिखावा करने वाले झंझटों ने पालकों के जेबों में डाका डालने का काम शुरू कर दिया है। लेकिन मजबूर पालक करें भी तो क्या करें।
सरकारी स्कूलों में तो पढ़ाई के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है। जिन बच्चों में पढ़ाई की ललक होती है वह सरकारी स्कूलों में भी स्वयं से पढ़ कर अच्छा पद पा लेते हैं। लेकिन जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर होते हैं उन्हें बेहतर शिक्षा देने के लिए सरकारी स्कूलों में कोई खास मशक्कत नहीं देखी जाती है। इस मामले में दिल्ली सबसे बेहतर है। भले ही दिल्ली के केजरीवाल सरकार की जगह जगह किरकिरी होती हो लेकिन, उन्होंने शिक्षा के मामले में सभी को पीछे छोड़ दिया और सरकारी स्कूलों को ही प्राइवेट स्कूल में तब्दील कर दिया। ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ अच्छा माहौल व आचरण मिल सके। लेकिन अन्य किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री ने इस तरह की कोई पहल नहीं की।
प्रदेश में भी सरकारी स्कूलों में बच्चे अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई कि सेवा का लाभ उठा सके इसके लिए आत्मानंद स्कूल की शुरुआत की गई है। लेकिन यहां भी आसानी से बच्चों को एडमिशन उपलब्ध नहीं हो पाता। अगर रिकॉर्ड खंगाले जाएं तो जितने भी नेता मंत्री हैं वह अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए 1 या इससे अधिक प्राइवेट स्कूल खुलवा चुके हैं।
लेकिन यह समाज मध्यमवर्गीय परिवारों के हित के लिए सोचने के लिए नहीं है। बल्कि, यहां तो पैसों से सक्षम व्यक्ति ही यह सब तय करते हैं उन्हें स्कूल में होने वाले बदलाव से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनके पास इफरात पैसे हैं स्कूलों में होने वाले बदलाव को स्वीकारने का। उनके पास ताकत है तो उसका दुरुपयोग भी खूब होता है। इस आदेश को हिजाब से जोड़कर ऐसा विवाद पैदा किया गया कि शाम तक खौफ से कांपते हुए सिस्टम ने आदेश को बदलवा दिया। अब कुछ दिन के लिए ही सही लाखों पालकों को हजारों रुपए खर्च करने होंगे। फिर नए सत्र के लिए फिर खरीदी करनी होगी।
दुख की बात तो यह है कि लोग अपने आपसी स्वार्थ के लिए शिक्षा को भी समाज में होने वाले विवाद से जोड़कर देखने लगे हैं। हिजाब विवाद को लेकर यह सही लोगों ने इसे इतना तूल दिया कि निजी स्कूल ऐसाेसिएशन को अपना फैसला वापस लेना पड़ा।