किसी भी संस्था की जिम्मेदारी ऐसे व्यक्ति को सौंपना जो स्वयं चारों ओर से अपराधों से घिरा हुआ है उसका नतीजा यही निकलता है कि सच के रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति को या तो चुप होकर अपराधिक कृत्य से गिरे हुए तथाकथित व्यक्ति की जी हुजूरी करनी पड़ती है या तो फिर उसे आत्महत्या का सहारा लेना पड़ता है। कुछ ऐसा ही हुआ नासिक के पास्टर के साथ जो मॉडरेटर पीसी सिंह के आक्रमक, अपराधिक,निरंकुश बर्ताव से इस हद तक आहत हो गया कि उसने स्वयं को जिंदा जला दिया।
अनंत आप्टे जिन्हें एक सेवानिवृत्त रेवडी द्वारा छुट्टी पर भेजा गया था उनकी जगह पर पीसी सिंह ने अपने ही तरह के आपराधिक स्वभाव के व्यक्ति शरद गायकवाड़ को नासिक के तथाकथित बिशप के रूप में नियुक्त किया गया। इस बिशप गायकवाड़ की निरंकुश, तर्कहीन और अनैतिक कार्यशैली ने रेवड अनंत आप्टे को चर्च के सामने आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया, जहां उन्होंने एक दशक से अधिक समय से सेवा की है। उसी पवित्र स्थल के सामने पास्टर ने खुद को जिंदा जला लिया।
धर्म का प्रचार प्रसार करने और ईश्वर की मार्ग पर चलने वाले का वेतन उतना अधिक नहीं होता है कि वह अच्छे से अपने परिवार का भरण पोषण कर सके लेकिन इसके बावजूद भी कम वेतन में गुजारा कर ईश्वर के मार्ग में दूसरों को चलने के लिए प्रेरित करने वाले के इस कदम से अगर किसी को सबसे ज्यादा फर्क पड़ा है तो वह है उनका परिवार क्योंकि पीसी सिंह इस हद तक मानवता विहीन व्यक्ति हैं कि उन्हें किसी के मरने से भी फर्क नहीं पड़ता भले ही किसी के मरने की पीछे की वजह वह स्वयं क्यों ना हो। उन्हें केवल पैसा और अपराध करना ही नजर आता है।
अनन्त आप्टे के इस कदम से उनका पूरा परिवार किस यातना और भावनात्मक असंतुलन से गुजर रहा है? इसकी कल्पना कोई भी नहीं कर सकता।
ऐसा नही है कि पिसी सिंह बिशप गायकवाड़ के इस अप्रासंगिक कृत्यों से अनजान हो। वह बखूबी जानते है कि किस तरह से नासिक सूबा के पुजारियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे है। बावजूद इसके पीसी सिंह इस बिशप के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई करना छोड़ उन्हें इस तरह से प्रताड़ित करने के लिए खुली छूट दे रखे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आज एक पास्टर ने आत्महत्या करने की कोशिश कि है आने वाले समय मे ऐसा ना हो कि कल आत्महत्या करने वाले बिशपों की संख्या बढ़ती ही जाए।
जो गायकवाड़ खुद को एक सम्मानित बिशप समझते है न ही वह एक नैतिक क्षमता वाले व्यक्ति है और न ही उनमें कोई विवेक है। बल्कि गायकवाड़ बिल्कुल गैर आध्यात्मिक, गैर धार्मिक है और यह नहीं समझते कि होने का सार और अर्थ क्या है।
रेव्ड अनंत आप्टे की सिर्फ एक बेटी एक पोती है। उसकी पत्नी ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है और वह सोच भी नहीं पा रही है की उनके साथ ऐसा क्यों हुआ। जिस पीसी सिंह कोई अपना मसीहा समझते आ रहे थे वही एक पास्टर के आत्महत्या करने का जिम्मेदार बन गया। इसके बावजूद भी पीसी सिंह के अंध भक्तों के अंदर इतनी भी मानवता और इंसानियत नहीं है कि वह खुलकर पीसी सिंह के इस लापरवाही के खिलाफ आवाज उठा सके क्योंकि उनके लिए किसी की जान की कोई भी किमत नहीं। भावनात्मक यातना की मात्रा, आगे क्या होगा इसका डर, आजीविका, दबाव और चिंता जो परिवार झेल रहा है वह कल्पना से परे है। रेव अनंत आप्टे अभी अस्पताल में जिस दर्द और पीड़ा से गुजर रहे हैं, उससे लड़ने की पूरी ताकत खो चुके हैं। थर्ड डिग्री बर्न, आईसीयू में उनके बगल में बैठे परिवार द्वारा सांस ली जा रही जलन की बदबू इसका अनुमान लगाना भी कठिन है।
अब सवाल यह उठता है कि पीसी सिंह के इस लापरवाही के बदले हुई इतनी बड़ी घटना के बाद भी क्या समाज के लोग अभी भी पीसी सिंह की जी हुजूरी करते हैं, उन्हें वापस मॉडरेटर के पद में देखना चाहते हैं या फिर आने वाले भविष्य में अपने व अपने साथियों के साथ होने वाले अप्रिय घटना के बारे में अंदेशा लगाकर ऐसे आपराधिक व्यक्ति पीसी सिंह को बाहर का रास्ता दिखाते है।
बहरहाल अब मिशन के लोगों ने इस अप्रिय घटना के बाद शरद गायकवाड़ को बर्खास्त करने की मांग की है। साथ ही अपने सूबा में अब और जांच समितियां स्वीकार नहीं करने की बात कही है।