छत्तीसगढ़ में धूमधाम से मनाया जा रहा है पोला त्यौहार, रावणभाठा में बैल दौड़ प्रतियोगिता
रायपुर। छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्यौहार पोला पर्व पूरे छत्तीसगढ़ में धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह त्यौहार मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। पोला पर्व पर फसल बोने में योगदान देने वाले बैलों को सम्मान देने के लिए किसान अपने बैलों की पूजा-अर्चना करके छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का भोग अर्पित करते हैं।
भादो अमावस्या पर आज यह पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। पोला पर्व पर जहां बालक मिट्टी का बैल दौड़ाते हुए नजर आए, वहीं बालिकाएं मिट्टी से बनाए गए रसोई में उपयोग में लाए जाने वाले बर्तनों से भोजन पकाने का खेल खेलकर मनोरंजन कर रहे हैं।
वहीं इस त्यौहार पर किसानों द्वारा बैल दोड़ का आयोजन भी किया जाता है। प्रतिवर्ष अनुसार आज भी राजधानी रायपुर के रावणभाठा में बैल दौड़ का आयोजन किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में किसान अपने बैलों को प्रतियोगिता के लिए सजाकर लाए और प्रतियोगिता में भाग लिया। आयोजन समिति द्वारा इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले किसानों को आकषर्क पुरस्कार भी दिया जाता है।
बाजार में खूब बिके पोला और मिट्टी के बैल
पोला पर्व के पहले बाजार में मिट्टी के बैल, मिट्टी के बर्तन बिकने के लिए सज चुके थे लेकिन एक दिन पहले जमकर बारिश हो गई जिसके कारण आज ही पोला पर्व पर जमकर खरीदी की गई । आमापारा, गोलबाजार, शास्त्री बाजार, गुढ़ियारी समेत अनेक इलाकों में मिट्टी के बैलों की जमकर बिक्री हुई ।
कान्हा ने किया था पोलासुर का वध
पोला पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि कंस मामा ने अपने भांजे कान्हा को मारने के लिए पोलासुर राक्षस को भेजा था। कान्हा ने भादो अमावस्या के दिन पोलासुर का वध किया था। इसे छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में पोला उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर किसान अपने बैलों का सम्मान करने उत्सव मनाते हैं।
इन व्यंजनों का लगाए गए भोग
छत्तीसगढ़ी व्यंजन ठेठरी, खुरमी, गुड़-चीला, गुलगुल भजिया, अनरसा, सोहारी, चौसेला, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया, तसमई आदि व्यंजनों का भोग बैलों को भोग लगाए गए।
देवताओं को मिट्टी के खिलौने अर्पित करने की परंपरा
परंपरा के अनुसार आज बच्चियां छत्तीसगढ़ के पारंपरिक बर्तन को देवी-देवताओं को अर्पित करने की परंपरा निभाया । ग्रामीण इलाकों में शीतला देवी समेत ठाकुर देवता, मौली माता, साड़हा देवता, परेतिन दाई, बईगा बाबा, घसिया मसान, चितावर, सतबहिनी,सियार देवता को मिट्टी के बैल चढ़ाने की परंपरा निभाए गए। पोला के पहले भादो अमावस्या पर खरीफ फसल के द्वितीय चरण का कार्य पूरा कर लिया जाता है। मान्यता है कि इस दिन अन्नमाता यानी फसलों में गर्भधारण होता है, यानी दानों में दूध भरता है। पोरा पटकने की रस्म ग्रामीण इलाकों में युवतियां गांव के बाहर मैदान अथवा चौराहों पर पोरा पटकने की रस्म निभाया।