धर्म की यह कैसी पराकाष्ठा: एक करे तो प्रचार, दूसरा करे तो धर्म परिवर्तन का आरोप
हमारे इस पूरे ब्रह्मांड में कुल 4 धर्म के लोग पाए जाते हैं हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई। लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए,धर्म न बटे और इसे आपसी कलह का मुद्दा ना बनाएं इसलिए हमेशा उन्हें यह सीख देते हैं कि हिंदू, मुस्लिम, सिख,ईसाई आपस में सब भाई भाई। पर क्या वाकई ऐसा है? क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में जो नजारे हम देख रहे हैं उसमें कहीं पर भी यह भाईचारा नजर नहीं आता। यदि कुछ नजर आता है तो वह केवल धर्म के नाम पर राजनीति या नरसंहार।
बाकी लोगों का तो पता नहीं पर जिस युग में हम हैं यहां कोई भी व्यक्ति 100% सही नहीं, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। अगर हर कोई 100% सही हो जाए तो वह भगवान ही ना बन जाए! पर इस सच को स्वीकारना शायद लोगों के लिए बेहद कठिन है। इसलिए उन्होंने अपने सहूलियत के हिसाब से सभी धर्मों के लिए प्रमाण पत्र जारी कर दिया है। अगर कोई मुस्लिम है तो वह पक्का आतंकवाद या कट्टर होगा और यदि मसीह है तो पक्का धर्म परिवर्तन करवाता होगा। क्यों भई बिना किसी को जाने परखे आप कैसे यह निश्चित कर सकते हैं और किसी के लिए ऐसी विचारधारा बना सकते हैं।
यदि आप हिंदू हैं तो हिंदुत्व के नाम का डंका पीटने वाले कई अधर्मी बाबा आज सलाखें गिन रहे हैं। पर किसी विशेष जाति को ही क्यों बदनाम करना? किसी एक के वजह से सब को आरोपी क्यों समझना? जिस प्रकार धर्म की बात करने वाले कुछ बाबा सबसे ज्यादा अधर्मी हो गए हैं लेकिन उनकी वजह से पूरे हिंदुओं को दोष नहीं दिया जा रहा, तो फिर कुछ लोगों के कारण जिनकी शायद मंशा ही मसीह समाज को बदनाम करने की हो उनके कृतियों से पूरे मसीह समाज को बदनाम क्यों करना?
धर्म प्रचार करना अपराध नहीं तो दो धर्मों के बीच सोच अलग क्यों
हर कोई अपने स्तर पर जाकर अपने अपने ईश्वर का प्रचार- प्रसार करते हैं। जिनके ऊपर उन्हें भरोसा है और उन्हें लगता है कि उनका प्रचार-प्रसार करने से कोई व्यक्ति उन पर विश्वास कर लेता है और उनकी तकलीफें इससे दूर हो जाती है तो इसमें कोई अपराध नहीं बल्कि यह तो जनसेवा ही हुआ। यही कारण है कि हर जगह आपको कृष्ण प्रेमी सड़कों पर,घर घर जाकर या सार्वजनिक स्थलों में श्रीमद्भागवत की किताब बेचते नजर आएंगे और हर किसी के पास जाकर भगवान कृष्ण की महत्ता बताते हुए उन्हें भागवत पढ़ने के लिए प्रेरित करते दिखेंगे भले ही वह किसी भी जाति धर्म के हों।
क्योंकि उन्हें तो नहीं पता होता कि सड़कों पर या किसी सार्वजनिक स्थल में या किसी के घर में कौन सी जाति के लोग होते हैं वह तो केवल अपने धर्म का प्रचार करते हैं और इसमें कोई गुनाह नहीं क्योंकि उनके हिसाब से वह अपने धर्म का काम कर रहे हैं। और आज के समय में लोग इतने समझदार तो जरूर है कि किसी की कही बातों पर नहीं आएंगे वह वही करेंगे जो उनकी इच्छा होगी। तो फिर जब यही कार्य मसीही करें तो उनके ऊपर धर्म परिवर्तन कराने का आरोप क्यों?
निम्न को हमेशा उच्च के अधीन रहना ना पड़े इसके लिए संविधान में तरह-तरह के कानून बनाए गए हैं पर यह क्या केवल बातों में ही सीमित है। धर्मनिरपेक्ष करने की बात करने वाले हमारे देश में क्या सीमित संख्या में होने के कारण ईसाइयों को हमेशा आरोपों का प्रहार सहना होगा? धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले नेता मंत्रियों के पास सबसे बड़ा मुद्दा धर्म परिवर्तन का होता है। इस पार्टी के कार्यकाल में इतना धर्म परिवर्तन हुआ या उस पार्टी के कार्यकाल में धर्म परिवर्तन की संख्या इतनी रही।
लेकिन धर्म परिवर्तन के आंकड़े बताने वालों ने कभी भी किसी के मुंह से यह बात सुनी है कि हमें जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करना पड़ा है इच्छा विरुद्ध जाकर और अगर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन हो भी गया तो क्या किसी ने उसके खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की है? शायद हमारे देश में तो नहीं या बहुत कम। क्योंकि आज हर व्यक्ति इतना तो स्वतंत्र है कि वह अपने आस्था और भरोसे के हिसाब से ईश्वर पर अपना विश्वास दिखाते हैं। तो फिर यह बाह्याडम्बर क्यों?
जब कोई हिंदू भागवत गीता हाथ में लिए घर घर जाता है तो या तो किसी दूसरे धर्म के होने के कारण ही उन्हें सम्मानपूर्वक मना कर दिया जाता है या तो हिंदू होने के नाते उनकी बात मान लेते है। लेकिन इस तरह ढिंढोरा नहीं पीटा जाता कि अमुक व्यक्ति ने घर-घर जाकर अपने धर्म का प्रचार किया है या धर्म परिवर्तन करवा रहा है। लेकिन अगर कोई ईसाई प्रचारक किसी के घर जाता है तो उसे मुद्दा बना कर सरेआम मसीह समाज की धज्जियां उड़ा दी जाती है।
दोहरी मानसिकता वाले इस समाज में सब अपने सहूलियत के हिसाब से तय कर लिया जाता है कि किसे अपनाना है और किसे बेज्जत करना है। पर इस तरह किसी के धर्म और आस्था का मजाक उड़ाते उसे अपमानित करते हुए उस पर धर्म परिवर्तन का आरोप लगाने वाले इस तस्वीर को देखकर समझ ले की बात का बतंगड़ बनाने के लिए हर किसी के पास मुद्दे हैं।
चाहे वह मसीही ही क्यों ना हो। जिनको बात बात पर धर्म परिवर्तन का आरोप लगाकर नीचा दिखाया जाता है। लेकिन इसे समझदारी कहें या दूसरों की आस्थाओं का सम्मान दोनों ही सूरतो में उन्होंने किसी के धर्म को सरेआम नीलाम नहीं किया।